क्या तुम ही हो वो ,
ये कैसे मैं जान लूँ ?
वो क्या पैमाने हैं ,
जिससे ये पहचान लूँ ?
क्या ख्वाईश हैं मेरी,
ये तो मैं भी नहीं जानता।
मेरी बातों के कुछ मायने हैं ,
ये भी नहीं मानता।
धुंधली सी बस एक तस्वीर हैं ,
जिसमें हैं एक चेहरा।
अंजानी सी सब राहें हैं ,
वक़्त भी हैं ठहरा।
उम्मीदों के कारवाँ को लेके चले जा रहा हूँ ,
कभी तो मंज़िल मिल ही जाएगी।
कौन होगी वो तुम ,
ये बात भी पता चल जाएगी।